1990 k pehle Birth waale jarroor Pade Acchi Wali Feelings Aayengi Jaroor pade... ☺
हम लोग,
जो 1947. से 1990
के बीच जन्में है,
We are blessed because,
👍 हमें कभी भी
👌हमारें माता- पिता को
हमारी पढाई को लेकर
कभी अपने programs
आगे पीछे नही करने पड़ते थे...!
👍 स्कूल के बाद हम
देर सूरज डूबने तक खेलते थे
👍 हम अपने
real दोस्तों के साथ खेलते थे;
net फ्रेंड्स के साथ नही ।
👍 जब भी हम प्यासे होते थे
तो नल से पानी पीना
safe होता था और
हमने कभी mineral water bottle को नही ढूँढा ।
👍 हम कभी भी चार लोग
गन्ने का जूस उसी गिलास से ही
पी करके भी बीमार नही पड़े ।
👍 हम एक प्लेट मिठाई
और चावल रोज़ खाकर भी
बीमार नही हुए ।
👍 नंगे पैर घूमने के बाद भी
हमारे पैरों को कुछ नही होता था ।
👍 हमें healthy रहने
के लिए Supplements नही
लेने पड़ते थे ।
👍 हम कभी कभी अपने खिलोने
खुद बना कर भी खेलते थे ।
👍 हम ज्यादातर अपने parents के साथ या grand- parents के पास ही रहे ।
👌हम अक्सर 4/6 भाई बहन
एक जैसे कपड़े पहनना
शान समझते थे.....
common. वाली नही
एकतावाली feelings ...
enjoy करते थे
👍 हमारे पास
न तो Mobile, DVD's,
PlayStation, Xboxes,
PC, Internet, chatting,
क्योंकि
हमारे पास real दोस्त थे ।
👍 हम दोस्तों के घर
बिना बताये जाकर
मजे करते थे और
उनके साथ खाने के
मजे लेते थे।
कभी उन्हें कॉल करके
appointment नही लेना पड़ा ।
👍 हम एक अदभुत और
सबसे समझदार पीढ़ी है क्योंकि
हम अंतिम पीढ़ी हैं जो की
अपने parents की सुनते हैं...
और
साथ ही पहली पीढ़ी
जो की
अपने बच्चों की सुनते हैं ।
We are not special,
but.
We are
LIMITED EDITION
and we are enjoying the
Generation Gap......
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तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है,
और तू मेरे गांव को गँवार कहता है //
ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है //
तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है //
थक गया है हर शख़्स काम करते करते //
तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है।
गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास !!
तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है //
मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं //
तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है //
जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा,
तू उन माँ बाप को अब भार कहता है //
वो मिलने आते थे तो कलेजा साथ लाते थे,
तू दस्तूर निभाने को रिश्तेदार कहता है //
बड़े-बड़े मसले हल करती थी पंचायतें //
तु अंधी भ्रष्ट दलीलों को दरबार कहता है //
बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में //
पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है //
अब बच्चे भी बड़ों का अदब भूल बैठे हैं //
तू इस नये दौर को संस्कार कहता है .//
किसी मित्र ने पोस्ट किया था जिसे पढ़ने के बाद मैं रोक न सका और आप सभी के बीच समर्पित किया !!
बहुत अच्छी पोस्ट साझा की मेरे भाई, दिल को छू गयी।
Thanks brother