उनको ब्रज करील कुंजों में कंटक पथ पर चलते देखा।।
जिनका ध्यान विरंचि शम्भू शनकादिक से न संभलते देखा।
उनको ग्वाल सखा मंडल में लेकर गेंद उछलते देखा।।
जिनकी बंक भृकुटि के भय से सगर सप्त उबलते देखा।
उनको हीं यशुदा जी के भय से अश्रु ‘बिन्दु” दृग ढलते देखा।।
जीवन केवल उतना ही नहीं है जो आज आप खा पी और सोकर गुजारते हैं जीवन वो है जो आपके जाने के बाद भी लोगों के लिए एक मिसाल बनकर रह जाए लोग उस लकीर से आगे तक चलें जो आपने खींच दी है!!
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