दूसरी वस्तु है – अदेव्ष । भगवान का नाम लेते-लेते अरुचि न होना अदेव्ष है । अरुचि होना देव्ष है । उदाहरणार्थ कई लोग दो-चार सामायिक कर के ऊब जाते है और कहने लगते हैं – ‘बस, अब मन नहीं लगता !’ वे सामायिक के बदले गप्पें हांकते हैं, किसी की निंदा करते हैं, विकथा करते हैं और इन कामों में पूरी रात बिता देते हैं । इस प्रकार धर्म-कार्य में अरुचि होंना देव्ष है और इस देव्ष या अरुचि का हट जाना एवं धर्मक्रिया में रस होना, आनंदानुभव होना अदेव्ष है ।
तीसरी आवश्यक शर्त ‘अखेद‘ है । अदेव्ष और अखेद भिन्न-भिन्न गुण हैं । रूचि होने पर भी कभी-कभी खेद या थकावट आ जाती है । भगवदभक्ति में थकावट न होना अखेद है ।
जिसकी अन्तरात्मा में से यह तीनों दोष दूर हो जाते हैं, उसी का आध्यात्मिक उत्थान होता है ।
किसी कवि ने कहा है :-
इस कथन में सिद्धान्त का गूढ़ रहस्य भर दिया गया है । जिन्होंने शास्त्रों का गहरा अध्ययन किया है, वे ‘चरमावर्त्त’ को समझ सकते हैं । अतएव इसका जरा स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक है ।
शास्त्र में काल को चक्र की उपमा दी गई है । उस कालचक्र के दो विभाग हैं – उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी । दोनों ही काल दश-दश कोड़ा-कोड़ी सागरोपम काल व्यतीत हो जाने पर एक कालचक्र कहलाता है । अब यह भी देख लेना आवश्यक है कि सागरोपम किसे कहते हैं ?
युगलिया जीव का केश हमारे केश की अपेक्षा बहुत सूक्ष्म होता है । हम लोगों का एक केश और युगलिया के चार हजार छयानवें केश बराबर हैं । युगलिया जीव के इन केशों के सूक्ष्मतम भाग करके, चार कोस लम्बे और इतने ही चौड़े एवं गहरे एक कूप में ठांस-ठांस कर भर दिये जाय । उन्हें इस प्रकार ठीक कर मजबूत भर दिया जाये कि चक्रवर्ती की सेना ऊपर से गुजर जाने पर भी दबे नहीं । मुसलाधार पानी बरसे और गंगा-सिन्धु जैसी नदियां उसके ऊपर से बह जाएं, फिर भी एक भी बाल का टुकड़ा बह न सके । संवर्तक जैसी प्रचंड वायु भी बहे, लेकिन उसका एक भी खंड न उड़ सके । इस प्रकार ठोक-ठोक कर वह कूप बालों से भरा गया हो । तत्पश्चात सौ-सौ वर्ष में एक-एक केश उस कूप में से निकाला जाये । इस तरह निकलने में कितना समय व्यतीत हो जायगा ? आप उसे अंकों से नहीं कह सकते और न लिखकर दिखला सकते हैं । वह काल लौकिक गणना से परे है । इसी कारण उसे उपमा देकर समझाया गया है ।
तो सौ-सौ वर्षों में केशों का एक-एक टुकड़ा निकालते-निकालते जितना कल व्यतीत होता है, उतना काल एक पल्योपम काल कहलाता है ।
करोड़ के साथ करोड़ का गुणाकार करने पर जो संख्या लब्ध होती है, उसे कोड़ाकोड़ी कहते हैं ।
दस कोड़ाकोड़ी पल्योपम काल बीतने पर एक सागरोपम होता है । ऐसे बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम जब समाप्त हो जाते है, तब एक कालचक्र अर्थात् एक उत्सर्पिणीकाल और एक अवसर्पिणीकाल की समाप्ति होती है ।
यद्धपि सागरोपम और पल्योपम का कालमान लम्बा है, फिर भी उसमें कोई असंभव जैसी बात नहीं समझना चाहिए । काल सदा से है और सदा रहेगा । कालद्र्व्य अनादी और अनन्त है । किसी ने ठीक ही कहा है –
हम बीत जाते है, जगत के समस्त पदार्थ बीत जाते हैं फिर भी काल ज्यों का त्यों बना है । यद्धपि हम व्यवहार में कहते हैं कि ‘इतना काल व्यतीत हो गया’ पर वास्तव में व्यतीत होते हैं हम लोग ! काल तो अनादि काल से है और अनन्त काल तक बना ही रहेगा ।
हां, तो दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का एक उत्सर्पिणी-काल और दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का ही एक अवसर्पिणी-काल होता है । दोनों मिलकर एक कालचक्र होता है, ऐसे-ऐसे अनन्त कालचक्र जब बीत जाते हैं, तब एक पुद्गल परावर्त्तन होता है ।
आज परमात्मपद प्राप्ति की सामग्री का दूसरा अध्धाय हुआ, अब अगला तीसरा व अंतिम अध्धाय होगा ।
पहले अध्धाय का जुडाव है :- https://busy.org/@mehta/27w7ww
Ye post Achi lagi main dusro ke opinion mujh ko na hi pat par bahut se log hai jo manta hai, Bhai good job hat of man @mehta
आपके समझने के लिए शुक्रिया. समीक्षा के लिए धन्यवाद.
hello @mehta
why you stop to make blog on mandap decoration.
We Se to parmatma se upar kuch nahi hai.
is bahane hum sab ko kuch gyan mil jayega.
sir bahut hi accha post hai,apki bat bilkul sahi hai agar hum ninda karne bath jai to puri raat bita denge, lakin accha kam karneme hum ko bahut taklif hoti hae. ishi tarah acchi bat faliane mea bahut samay lagta hai lakin galat baat turat puri duniya ko pata chal jati hai. sir bahut accha post hai,aap konse acharya ki books read karte ho. please give me your personal number.
क्या आप केवल्य ज्ञान के बारे मे भी जानते हैं?
अभी तो नहीं जानता हूँ, पर लगता है जल्दी ही जान जाऊंगा.
@mehta क्या शानदार लिखा है आपने। काबिले तारीफ है।
Great!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Apne bahut achha likha h .........!!
Nice information
aap ca rk mehta ho kya jo eten main padate the
sir mene apki satelite class li thi
you are super sir
Nice info
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Ye lesson bhi pichhle lesson ki tahah bahut sunder hai. Gyan ki baate bahut achhi hai.
Bas dhukhad ye lagta hai ki aaj ki generation in sab see dur ho gyi h.
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